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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचना

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2784
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचना- सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- आई.ए. रिचर्ड्स की व्यावहारिक आलोचना की समीक्षा कीजिये। 

उत्तर -

डॉ. रिचर्ड्सन ने सन् 1626 में "प्रैक्टिकल क्रिटिसिज्म" नामक पुस्तक प्रकाशित की। जिसमें उनके द्वारा किये गये विभिन्न प्रयोगों का प्रकाशन किया गया तथा इसमें उन्होंने शिक्षण तकनीक के लिये कुछ निश्चित सुझाव दिये जिनका सारे विश्व में अंग्रेजी अध्ययन पर व्यापक प्रभाव पड़ा। डॉ. रिचर्ड्स के प्रयोग अब मानक प्रथा का रूप ले चुके हैं। व्यावहारिक आलोचना में विद्यार्थी किसी भी काव्यांश या गद्यांश पर अपनी व्यक्तिगत प्रतिक्रिया व्यक्त करता है। उसने अब तक काव्य या गद्य की समीक्षा सम्बन्धी सिद्धान्त समझे हैं और जिनका प्रयोग उसने देखा है, उनका अनुसरण करते हुये वह अपने मन में स्थापित साहित्य सम्बन्धी मूल्यों के आधार पर उसका विश्लेषण विवेचन करता है। इस प्रकार उसकी व्यक्तिगत विश्लेषण और विवेचन की क्षमता बढ़ती है। कुछ विद्वान इस परीक्षण प्रक्रिया में लय, ध्वनि, छन्द, काव्यशास्त्र के तकनीकी पहलुओं, अलंकार आदि पर ध्यान देना आवश्यक समझते हैं और केवल उसमें दृश्य विधान को महत्व देते हैं, किन्तु यह सर्वथा उचित नहीं कहा जा सकता है। हमें केवल काव्य के कला - पक्ष तक ही सीमित न रह जाना चाहिये। भाव पक्ष पर भी विस्तृत विवेचन करना चाहिये। क्योंकि कला- पक्ष एवं भाव पक्ष में भाव पक्ष ही प्रधान होता है। यह माना जाना चाहिये। कला-पक्ष तो उस भाव-पक्ष को अभिव्यक्त करने का साधन मात्र है।

आधुनिक पाश्चात्य आलोचकों में रिचर्ड्स का अत्यन्त उल्लेखनीयं स्थान है। उन्होंने अर्थ विज्ञान एवं मनोविज्ञान के क्षेत्र से साहित्य में प्रवेश किया और कई वर्षों तक हार्वर्ड विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्राध्यापक भी रहे। अनेकों आलोचनात्मक ग्रन्थों में द फाउंडेशन ऑफ एस्थेटिक्स, द मीनिंग ऑफ मीनिंग, साइंस एंड पोएट्री, प्रिंसिपल्स ऑफ लिटरेरी क्रिटसिज्म तथा बेसिक रूल्ज ऑफ रीजन आदि प्रमुख हैं, परन्तु इनमें से प्रिंसिपल्स ऑफ लिटरेरी क्रिटिसिज्म, स्थायी महत्व की अधिकारिणी है, जो बहुत अधिक प्रसिद्ध है।

डॉ. आई.ए. रिचर्ड्स मुख्यतः आलोचक हैं, उन्होंने साहित्य की मनोवैज्ञानिक विवेचना द्वारा पाश्चात्य आलोचना को सर्वथा नूतन आलोक प्रदान करने का प्रयत्न किया है। वह एक ऐसे मौलिक चिन्तक एवं काव्यशास्त्र मर्मज्ञ हैं, जिन्होंने मनोविज्ञान, भाषा विज्ञान और आध्यात्मिक दर्शन के आलोक में अपने काव्यशास्त्रीय सिद्धान्तों की स्थापना की है। सौन्दर्यानुभूति का सम्बन्ध वह उन्हीं सामान्य भावनाओं से मानते हैं, जिनका प्रकाशन एवं कार्य हम जीवन के सभी क्षेत्रों में देखते हैं तथा वह सौन्दर्य कला एवं जीवन और अनिवार्य सम्बन्ध स्वीकार करता है। रिचर्डस ने भाषा के निम्नलिखित दो प्रकार के प्रयोग बताये हैं एक तो अपनी भाषा द्वारा किसी सन्दर्भ विशेष के लिए वक्तव्य दिया जाता है, जो चाहे सत्य हो या मिथ्या हो, भाषा का वैज्ञानिक प्रयोग। दूसरा प्रयोग मनोवेगात्मक है और भाषा का यह प्रयोग हमारे मनोवेगों तथा दृष्टिकोण को प्रभावी बनाने में सहायक सिद्ध होता है।

रिचर्ड्स कविता का मूल्य उसकी मन को प्रभावित करने की क्षमता पर निर्भर मानते हुए कहते हैं कि जो कविता पाठक या श्रोता के मन को जितना अधिक प्रभावित कर पायेगी, जिसमें संप्रेषणीयता जितनी अधिक होगी वह उतनी ही उत्कृष्ट कहलायेगी। व्यावहारिक आलोचना के सम्बन्ध में अपने विचार प्रकट करते हुए रिचर्ड्स ने कहा है कि "रचना को अच्छी तरह समझने के लिए आलोचक को चाहिए, कि वह रचना को उसके वास्तविक रूप में देखे और ऐसी मानसिक दशा उत्पन्न करे, जो रचना के अनुकूल हो। उन्होंने इसके लिए आलोचना में निष्कपटता, ईमानदारी एवं आत्म- सम्पूर्णता आदि बातों को आवश्यक मानते हुए आलोचक को परिश्रमशील एवं विद्वान् होना भी जरूरी बताया है। आलोचना एवं व्याख्या का अन्तर स्पष्ट करते हुए कहा है कि व्याख्या आलोचना से पहले की वस्तु है और जहाँ कि व्याख्याता केवल कृति का प्रबुद्ध ग्रहण कर उसमें प्रवेश कर जाता है, वहाँ आलोचक पहले कृति को पढ़कर उसे ध्यान में रखने के बाद उसके गुण-दोषों पर अपना निर्णय देता है।

रिचर्ड्स कविता के लिये लय को अनिवार्य मानते हैं, पर उनकी दृष्टि में लय केवल ध्वनियों की व्याख्या नहीं है, बल्कि उसमें गम्भीर भावनाएँ और शब्दों के अर्थ नियोजित रहते हैं। लय का आधार है प्रत्याशा और संगीत या कविता में ध्वनि इस प्रकार नियोजित की जाती है, कि निरन्तर हम पहले से ही भावी संभावनाओं का बोध मन में दबाये रखते हैं।

रिचर्ड्स के अनुसार कला का मूल्य इस बात में है कि वह हमारे आवेशों में संगीत एवं सन्तुलन स्थापित करे और हमारी अनुभूतियों के क्षेत्र को व्यापक बनाये। इस प्रकार साहित्य मनुष्य को पारस्परिक सहयोग के लिए प्रेरित करता है और रिचर्ड्स की दृष्टि में साहित्य का प्रयोजन एक ऐसी मनःस्थिति उत्पन्न करना है, जिसमें आवेगों का सन्तुलन होने के साथ-साथ बाह्य क्रिया के लिए तत्परता उत्पन्न हो जाये। साथ ही वह सौन्दर्य की विषयनिष्ठा पर जोर देते हुए भी सौन्दर्य को न तो पूर्णतः विषयीगत और न पूर्णतः विषयगत मानने के पक्ष में हैं। उन्होंने सौन्दर्य शब्द के स्थान पर अनुभूति का मूल्य शब्द प्रयुक्त किया है और इस मूल्य की सत्ता उद्दीपन में न मानकर अनुक्रियाओं में मानी है। कलाकार को सफल निवेदन में सहायता देने वाले गुणों की चर्चा करते हुए रिचर्ड्स ने कहा कि प्रथम तो कलाकार की अनुभूति अधिक विस्तृत एवं मूल्यवान होनी चाहिए और वह उस अनुमति के विविध तत्वों में सम्बन्ध स्थापित करने में स्वतन्त्र भी हो। कलाकार में जागरुक निरीक्षक शक्ति भी आवश्यक है और सफल संप्रेषण के लिए कलाकार एवं पाठक के आवेग तथा विभाव को समान होना चाहिए। कलाकार की सफलता की एक कसौटी यह भी है कि वह जो कुछ कहना चाहता है, वह दूसरों तक पहुँचा सका है या नहीं। अर्थात् केवल वक्ता के पास विशिष्ट प्रकार की संप्रेषण योग्यता होनी चाहिए अपितु श्रोता के पास भी वैसी ही विशिष्ट ग्राहिका शक्ति होनी चाहिए।

रिचर्ड्स कहते हैं - "एक श्रेष्ठ कला वह है जो मानव सुख की अभिवृद्धि में संलग्न हो, पीड़ितों के उद्धार या हमारी पारस्परिक सहानुभूति के विस्तार से जुड़ी हुई हो, जो हमारे नूतन और पुरातन सत्य का आख्यान करे, जिससे इस भूमि पर हमारी स्थिति और अधिक सुदृढ़ हो, तो वह महान कला होगी।" उनका विचार है कि सृजन के क्षणों में कलाकार सर्वोत्तम स्थिति में होता है, काव्य की उपयोगिता भी यही है कि पाठक भी उस मानसिक स्थिति के निकट पहुँचे। रिचर्ड्स ने इसे ही काव्य का मूल्यवान रूप माना है और आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने इसे ही 'हृदय की रसदशा' का नाम दिया है।

आधुनिक पाश्चात्य आलोचकों में डॉ. आई.ए. रिचर्ड्स ने अंग्रेजी साहित्य में वैज्ञानिक आलोचना पद्धति का उन्मेष कर काव्य-जगत में 'कला' कला के लिए, काव्य में अभिव्यंजनावाद तथा साहित्य में रहस्यवादी आदि वायवी मूल्यों का विरोध करते हुए आलोचना को एक वैज्ञानिक चिन्तन प्रक्रिया का स्वरूप प्रदान किया हैं। उन्होंने पहली बार हमारा ध्यान इस ओर आकृष्ट किया है, कि - "आलोचक रचना में रचनाकार का सम्पूर्ण व्यक्तित्व, विभिन्न तत्व से निर्मित एकीकृत मूल्यवान अनुभव तथा अन्य कलात्मक संयोजना से उत्पन्न सहज अभिव्यक्ति तथा उसमें आलोचक की स्वयं की संवेदनात्मक परितृप्ति आदि विभिन्न पक्षों का सम्यक् अध्ययन कर उनका एक तटस्थ विश्लेषण प्रस्तुत करता है।"

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- काव्य के प्रयोजन पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- भारतीय आचार्यों के मतानुसार काव्य के प्रयोजन का प्रतिपादन कीजिए।
  3. प्रश्न- हिन्दी आचायों के मतानुसार काव्य प्रयोजन किसे कहते हैं?
  4. प्रश्न- पाश्चात्य मत के अनुसार काव्य प्रयोजनों पर विचार कीजिए।
  5. प्रश्न- हिन्दी आचायों के काव्य-प्रयोजन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए?
  6. प्रश्न- आचार्य मम्मट के आधार पर काव्य प्रयोजनों का नाम लिखिए और किसी एक काव्य प्रयोजन की व्याख्या कीजिए।
  7. प्रश्न- भारतीय आचार्यों द्वारा निर्दिष्ट काव्य लक्षणों का विश्लेषण कीजिए
  8. प्रश्न- हिन्दी के कवियों एवं आचार्यों द्वारा प्रस्तुत काव्य-लक्षणों में मौलिकता का अभाव है। इस मत के सन्दर्भ में हिन्दी काव्य लक्षणों का निरीक्षण कीजिए 1
  9. प्रश्न- पाश्चात्य विद्वानों द्वारा बताये गये काव्य-लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
  10. प्रश्न- आचार्य मम्मट द्वारा प्रदत्त काव्य-लक्षण की विवेचना कीजिए।
  11. प्रश्न- रमणीयार्थ प्रतिपादकः शब्दः काव्यम्' काव्य की यह परिभाषा किस आचार्य की है? इसके आधार पर काव्य के स्वरूप का विवेचन कीजिए।
  12. प्रश्न- महाकाव्य क्या है? इसके सर्वमान्य लक्षण लिखिए।
  13. प्रश्न- काव्य गुणों की चर्चा करते हुए माधुर्य गुण के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
  14. प्रश्न- मम्मट के काव्य लक्षण को स्पष्ट करते हुए उठायी गयी आपत्तियों को लिखिए।
  15. प्रश्न- 'उदात्त' को परिभाषित कीजिए।
  16. प्रश्न- काव्य हेतु पर भारतीय विचारकों के मतों की समीक्षा कीजिए।
  17. प्रश्न- काव्य के प्रकारों का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
  18. प्रश्न- स्थायी भाव पर एक टिप्पणी लिखिए।
  19. प्रश्न- रस के स्वरूप का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  20. प्रश्न- काव्य हेतु के रूप में निर्दिष्ट 'अभ्यास' की व्याख्या कीजिए।
  21. प्रश्न- 'रस' का अर्थ स्पष्ट करते हुए उसके अवयवों (भेदों) का विवेचन कीजिए।
  22. प्रश्न- काव्य की आत्मा पर एक निबन्ध लिखिए।
  23. प्रश्न- भारतीय काव्यशास्त्र में आचार्य ने अलंकारों को काव्य सौन्दर्य का भूल कारण मानकर उन्हें ही काव्य का सर्वस्व घोषित किया है। इस सिद्धान्त को स्वीकार करने में आपकी क्या आपत्ति है? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  24. प्रश्न- काव्यशास्त्रीय सम्प्रदायों के महत्व को उल्लिखित करते हुए किसी एक सम्प्रदाय का सम्यक् विश्लेषण कीजिए?
  25. प्रश्न- अलंकार किसे कहते हैं?
  26. प्रश्न- अलंकार और अलंकार्य में क्या अन्तर है?
  27. प्रश्न- अलंकारों का वर्गीकरण कीजिए।
  28. प्रश्न- 'तदोषौ शब्दार्थों सगुणावनलंकृती पुनः क्वापि कथन किस आचार्य का है? इस मुक्ति के आधार पर काव्य में अलंकार की स्थिति स्पष्ट कीजिए।
  29. प्रश्न- 'काव्यशोभाकरान् धर्मान् अलंकारान् प्रचक्षते' कथन किस आचार्य का है? इसका सम्बन्ध किस काव्य-सम्प्रदाय से है?
  30. प्रश्न- हिन्दी में स्वीकृत दो पाश्चात्य अलंकारों का उदाहरण सहित परिचय दीजिए।
  31. प्रश्न- काव्यालंकार के रचनाकार कौन थे? इनकी अलंकार सिद्धान्त सम्बन्धी परिभाषा को व्याख्यायित कीजिए।
  32. प्रश्न- हिन्दी रीति काव्य परम्परा पर प्रकाश डालिए।
  33. प्रश्न- काव्य में रीति को सर्वाधिक महत्व देने वाले आचार्य कौन हैं? रीति के मुख्य भेद कौन से हैं?
  34. प्रश्न- रीति सिद्धान्त की अन्य भारतीय सम्प्रदायों से तुलना कीजिए।
  35. प्रश्न- रस सिद्धान्त के सूत्र की महाशंकुक द्वारा की गयी व्याख्या का विरोध किन तर्कों के आधार पर किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
  36. प्रश्न- ध्वनि सिद्धान्त की भाषा एवं स्वरूप पर संक्षेप में विवेचना कीजिए।
  37. प्रश्न- वाच्यार्थ और व्यंग्यार्थ ध्वनि में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  38. प्रश्न- 'अभिधा' किसे कहते हैं?
  39. प्रश्न- 'लक्षणा' किसे कहते हैं?
  40. प्रश्न- काव्य में व्यञ्जना शक्ति पर टिप्पणी कीजिए।
  41. प्रश्न- संलक्ष्यक्रम ध्वनि को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  42. प्रश्न- दी गई पंक्तियों में में प्रयुक्त ध्वनि का नाम लिखिए।
  43. प्रश्न- शब्द शक्ति क्या है? व्यंजना शक्ति का सोदाहरण परिचय दीजिए।
  44. प्रश्न- वक्रोकित एवं ध्वनि सिद्धान्त का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  45. प्रश्न- कर रही लीलामय आनन्द, महाचिति सजग हुई सी व्यक्त।
  46. प्रश्न- वक्रोक्ति सिद्धान्त व इसकी अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  47. प्रश्न- वक्रोक्ति एवं अभिव्यंजनावाद के आचार्यों का उल्लेख करते हुए उसके साम्य-वैषम्य का निरूपण कीजिए।
  48. प्रश्न- वर्ण विन्यास वक्रता किसे कहते हैं?
  49. प्रश्न- पद- पूर्वार्द्ध वक्रता किसे कहते हैं?
  50. प्रश्न- वाक्य वक्रता किसे कहते हैं?
  51. प्रश्न- प्रकरण अवस्था किसे कहते हैं?
  52. प्रश्न- प्रबन्ध वक्रता किसे कहते हैं?
  53. प्रश्न- आचार्य कुन्तक एवं क्रोचे के मतानुसार वक्रोक्ति एवं अभिव्यंजना के बीच वैषम्य का निरूपण कीजिए।
  54. प्रश्न- वक्रोक्तिवाद और वक्रोक्ति अलंकार के विषय में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  55. प्रश्न- औचित्य सिद्धान्त किसे कहते हैं? क्षेमेन्द्र के अनुसार औचित्य के प्रकारों का वर्गीकरण कीजिए।
  56. प्रश्न- रसौचित्य किसे कहते हैं? आनन्दवर्धन द्वारा निर्धारित विषयों का उल्लेख कीजिए।
  57. प्रश्न- गुणौचित्य तथा संघटनौचित्य किसे कहते हैं?
  58. प्रश्न- प्रबन्धौचित्य के लिये आनन्दवर्धन ने कौन-सा नियम निर्धारित किया है तथा रीति औचित्य का प्रयोग कब करना चाहिए?
  59. प्रश्न- औचित्य के प्रवर्तक का नाम और औचित्य के भेद बताइये।
  60. प्रश्न- संस्कृत काव्यशास्त्र में काव्य के प्रकार के निर्धारण का स्पष्टीकरण दीजिए।
  61. प्रश्न- काव्य के प्रकारों का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
  62. प्रश्न- काव्य गुणों की चर्चा करते हुए माधुर्य गुण के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
  63. प्रश्न- काव्यगुणों का उल्लेख करते हुए ओज गुण और प्रसाद गुण को उदाहरण सहित परिभाषित कीजिए।
  64. प्रश्न- काव्य हेतु के सन्दर्भ में भामह के मत का प्रतिपादन कीजिए।
  65. प्रश्न- ओजगुण का परिचय दीजिए।
  66. प्रश्न- काव्य हेतु सन्दर्भ में अभ्यास के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  67. प्रश्न- काव्य गुणों का संक्षित रूप में विवेचन कीजिए।
  68. प्रश्न- शब्द शक्ति को स्पष्ट करते हुए अभिधा शक्ति पर प्रकाश डालिए।
  69. प्रश्न- लक्षणा शब्द शक्ति को समझाइये |
  70. प्रश्न- व्यंजना शब्द-शक्ति पर प्रकाश डालिए।
  71. प्रश्न- काव्य दोष का उल्लेख कीजिए।
  72. प्रश्न- नाट्यशास्त्र से क्या अभिप्राय है? भारतीय नाट्यशास्त्र का सामान्य परिचय दीजिए।
  73. प्रश्न- नाट्यशास्त्र में वृत्ति किसे कहते हैं? वृत्ति कितने प्रकार की होती है?
  74. प्रश्न- अभिनय किसे कहते हैं? अभिनय के प्रकार और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  75. प्रश्न- रूपक किसे कहते हैं? रूप के भेदों-उपभेंदों पर प्रकाश डालिए।
  76. प्रश्न- कथा किसे कहते हैं? नाटक/रूपक में कथा की क्या भूमिका है?
  77. प्रश्न- नायक किसे कहते हैं? रूपक/नाटक में नायक के भेदों का वर्णन कीजिए।
  78. प्रश्न- नायिका किसे कहते हैं? नायिका के भेदों पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- हिन्दी रंगमंच के प्रकार शिल्प और रंग- सम्प्रेषण का परिचय देते हुए इनका संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  80. प्रश्न- नाट्य वृत्ति और रस का सम्बन्ध बताइए।
  81. प्रश्न- वर्तमान में अभिनय का स्वरूप कैसा है?
  82. प्रश्न- कथावस्तु किसे कहते हैं?
  83. प्रश्न- रंगमंच के शिल्प का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  84. प्रश्न- अरस्तू के 'अनुकरण सिद्धान्त' को प्रतिपादित कीजिए।
  85. प्रश्न- अरस्तू के काव्यं सिद्धान्त का विवेचन कीजिए।
  86. प्रश्न- त्रासदी सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
  87. प्रश्न- चरित्र-चित्रण किसे कहते हैं? उसके आधारभूत सिद्धान्त बताइए।
  88. प्रश्न- सरल या जटिल कथानक किसे कहते हैं?
  89. प्रश्न- अरस्तू के अनुसार महाकाव्य की क्या विशेषताएँ हैं?
  90. प्रश्न- "विरेचन सिद्धान्त' से क्या तात्पर्य है? अरस्तु के 'विरेचन' सिद्धान्त और अभिनव गुप्त के 'अभिव्यंजना सिद्धान्त' के साम्य को स्पष्ट कीजिए।
  91. प्रश्न- कॉलरिज के काव्य-सिद्धान्त पर विचार व्यक्त कीजिए।
  92. प्रश्न- मुख्य कल्पना किसे कहते हैं?
  93. प्रश्न- मुख्य कल्पना और गौण कल्पना में क्या भेद है?
  94. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के काव्य-भाषा विषयक सिद्धान्त पर प्रकाश डालिये।
  95. प्रश्न- 'कविता सभी प्रकार के ज्ञानों में प्रथम और अन्तिम ज्ञान है। पाश्चात्य कवि वर्ड्सवर्थ के इस कथन की विवेचना कीजिए।
  96. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के कल्पना सम्बन्धी विचारों का संक्षेप में विवेचन कीजिए।
  97. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के अनुसार काव्य प्रयोजन क्या है?
  98. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के अनुसार कविता में छन्द का क्या योगदान है?
  99. प्रश्न- काव्यशास्त्र की आवश्यकता का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  100. प्रश्न- रिचर्ड्स का मूल्य-सिद्धान्त क्या है? स्पष्ट रूप से विवेचन कीजिए।
  101. प्रश्न- रिचर्ड्स के संप्रेषण के सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
  102. प्रश्न- रिचर्ड्स के अनुसार सम्प्रेषण का क्या अर्थ है?
  103. प्रश्न- रिचर्ड्स के अनुसार कविता के लिए लय और छन्द का क्या महत्व है?
  104. प्रश्न- 'संवेगों का संतुलन' के सम्बन्ध में आई. ए. रिचर्डस् के क्या विचारा हैं?
  105. प्रश्न- आई.ए. रिचर्ड्स की व्यावहारिक आलोचना की समीक्षा कीजिये।
  106. प्रश्न- टी. एस. इलियट के प्रमुख सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए। इसका हिन्दी साहित्य पर क्या प्रभाव पड़ा है?
  107. प्रश्न- सौन्दर्य वस्तु में है या दृष्टि में है। पाश्चात्य समीक्षाशास्त्र के अनुसार व्याख्या कीजिए।
  108. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव तथा विकासक्रम पर एक निबन्ध लिखिए।
  109. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद से क्या तात्पर्य है? उसका उदय किन परिस्थितियों में हुआ?
  110. प्रश्न- साहित्य में मार्क्सवादी समीक्षा का क्या अभिप्राय है? विवेचना कीजिए।
  111. प्रश्न- आधुनिक साहित्य में मनोविश्लेषणवाद के योगदान की विवेचना कीजिए।
  112. प्रश्न- आलोचना की पारिभाषा एवं उसके स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  113. प्रश्न- हिन्दी की मार्क्सवादी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
  114. प्रश्न- हिन्दी आलोचना पद्धतियों को बताइए। आलोचना के प्रकारों का भी वर्णन कीजिए।
  115. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद के अर्थ और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  116. प्रश्न- मनोविश्लेषवाद की समीक्षा दीजिए।
  117. प्रश्न- मार्क्सवाद की दृष्टिकोण मानवतावादी है इस कथन के आलोक में मार्क्सवाद पर विचार कीजिए?
  118. प्रश्न- नयी समीक्षा पद्धति पर लेख लिखिए।
  119. प्रश्न- विखंडनवाद को समझाइये |
  120. प्रश्न- यथार्थवाद का अर्थ और परिभाषा देते हुए यथार्थवाद के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  121. प्रश्न- कलावाद किसे कहते हैं? कलावाद के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालिए।
  122. प्रश्न- बिम्बवाद की अवधारणा, विचार और उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  123. प्रश्न- प्रतीकवाद के अर्थ और परिभाषा का वर्णन कीजिए।
  124. प्रश्न- संरचनावाद में आलोचना की किस प्रविधि का विवेचन है?
  125. प्रश्न- विखंडनवादी आलोचना का आशय स्पष्ट कीजिए।
  126. प्रश्न- उत्तर-संरचनावाद के उद्भव और विकास को स्पष्ट कीजिए।
  127. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की काव्य में लोकमंगल की अवधारणा पर प्रकाश डालिए।
  128. प्रश्न- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की आलोचना दृष्टि "आधुनिक साहित्य नयी मान्यताएँ" का उल्लेख कीजिए।
  129. प्रश्न- "मेरी साहित्यिक मान्यताएँ" विषय पर डॉ0 नगेन्द्र की आलोचना दृष्टि पर विचार कीजिए।
  130. प्रश्न- डॉ0 रामविलास शर्मा की आलोचना दृष्टि 'तुलसी साहित्य में सामन्त विरोधी मूल्य' का मूल्यांकन कीजिए।
  131. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की आलोचनात्मक दृष्टि पर प्रकाश डालिए।
  132. प्रश्न- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जी की साहित्य की नई मान्यताएँ क्या हैं?
  133. प्रश्न- रामविलास शर्मा के अनुसार सामंती व्यवस्था में वर्ण और जाति बन्धन कैसे थे?

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